Sunday 24 February 2013

Let the heart beat the way it desires to!

"दिल जैसे धड़के, धड़कने दो।"


कैम्पबेल ने एक बार कहा था, "ज़िन्दगी का मकसद अपनी धड़कन को भ्रमाण के सुर के साथ जोड़ना है।" और हो भी तोह क्यूँ ना? ज़िन्दगी का सबसे मधुर स्वर, जो सदैव हमारे साथ रहता है, मरते दम तक वह तोह हमारी धड़कन ही  है। धड़कन ही तोह याद दिलाती है हमें, ऐसे हर क्षण में, जिसमें हमें लगता है, अब और नहीं, कि अब तोह बहुत बाकी है, अभी तोह और जीना है, अभी तोह दिल धड़क रहा है! 


आज कल की ओढ़ में, सभी को क्या कहना जब, मै, आप और आस पास का हर व्यक्ति यह भूल चूका है, कि ज़िन्दगी जीना, जीने के साधन इखत्ता करना ही नहीं है। जीवन का सुख उठाने के लिए जीवन को दांव पर लगाना अनिवार्य नहीं है! जीवन का सुख, वह अलग है, और उसे पाने का मार्ग अलग। मनुष्य ने तोह मार्ग को मंजिल बना लिया है, और इसमें असली सुख और असली दुःख का अनुभव ही करना भूल गया है। 


जब रोना आता है, तब ज़बरदस्ती हँसना पड़ता है, और जब कोई इंसान हँसना चाहता है, तक स्तिथि अनुसार उसे रोने का दिखावा करना पड़ता है। न तोह इंसान अपने मन से खुश ना अपने मन से सुखी हो सकता है। वह दर को छुपाता है और प्रेम दिखाने से डरता व कतराता है। ऐसे में यदि क्रोध के अलावा कुछ सामने आयेगा, और चीज़ों को बनाने में नहीं, बल्कि बिगाड़ने में जुटेगा, तोह यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं हुई! 


इंसान, हमारा और आप्नका दिल, एक प्याले के सामान ही होता है। जब उसमें अधिक से ज्यादा, झूट और दबाव के सामान पानी दाल जायेगा, तोह वह एक सीमा पार होने के बाद छलकेगा ही। इस छलक को समझने वाले भी कम ही मिलते हैं। और जो होते हैं, उन्हें हम अपनी अपनी मंजिल की ओर बढ़ते समय ही नकारा कर देते हैं- हमारे माँ-बाप, व भाई-बहन। 


ज़िन्दगी की ख़ुशी, जो हमें खुश करें, उन्हें समीप और जो दुःख पहुंचाएं व अकारात्मक भावना उजागर करें, उन्हें दूर रखना है। दुनिया के भीड़ में, इन्ही चंद लोगों को पहचानना है, उन्हें खुश रखना है। क्यूंकि ख़ुशी बाटने से ही तोह बढती है? ख़ुशी चीज़ों से नहीं, लोगों से मिलती है, हमारे जैसे और धड़कते दिलों से मिलती है। ऐसे दिल जो हमारे दिल को दुबारा सुर में धड़कना सिख सकें!


भावनाओं को जताना, ख़ुशी पर खुश होने, आते हुए आंसुओं को कभी न रोकना, जितना हो सके मुस्कुराना, क्रोध में भी सबकी अच्छाई याद रखना, येही तोह दिल को खुश रखने के कुछ तरीके हैं! हम किसी के गुलाम नहीं होते, अपने ही बनाये हुए बंधनों में जकड़कर रह जाते हैं। इन्ही बंधनों को तोडना है, सांस लेना है, मुस्कुराना है, हँसना है, रूठना है, मनाना है, और अपने दिल को जैसे वह धड़कना चाहे, वैसे धड़कने की अनुमति देनी है।





"ज़िन्दगी लिए गए साँसों से नहीं आपनी जाती, बल्कि उन लम्हों से आपि जाती है, जो हमारी सांस व धड़कन चीन ले गए!" 



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